मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का,
क्या कारोगे सूर्य का क्या देखना है।
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है।
दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है.
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का,
क्या कारोगे सूर्य का क्या देखना है।
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है।
दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है.