देसी रियासतों को भारत में मिलाने वाले लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को नमन

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम आन्दोलन में अपनी युवावस्था में मातृभूमि की सेवा में अपने को अर्पित कर दिया था। कहा जाता है कि घर वालों को बिना बताए वे तीन साल लापता रहे। उन्होंने झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई तथा नाना साहब घोड़ोपन्त की सेनाओं में भाग लेकर अंग्रेजों के साथ युद्ध भी किया था।

झबेरभाई एक धर्म परायण व्यक्ति थे। गुजरात में सन् १८२९ में स्वामी सहजानन्द द्वारा स्थापित स्वामी नारयण पंथ के वे परम भक्त थे। पचपन वर्ष की अवस्था के उपरान्त उन्होंने अपना जीवन उसी में अर्पित कर दिया था। वल्लभभाई ने स्वयं कहा है : " मैं तो साधारण कुटुम्ब का था। मेरे पिता मन्दिर में ही जिन्दगी बिताते थे और वहीं उन्होंने पूरी की" घर परिवार वतावरण ने उन्हें बचपन से ही आध्यात्मिक एवं राष्ट्रभक्ति की भावना भर दी थी वल्लभाभाई की माता लाड़बाई अपने पति के समान एक धर्मपरायण महिला थी। वल्लभभाई पाँच भाई व एक बहन थे। भाइयों के नाम क्रमशः सोभाभाई, नरसिंहभाई, विट्ठलभाई, वल्लभभाई और काशीभाई थे। बहन डाबीहा सबसे छोटी थी। इनमें विट्ठलभाई तथा वल्लभभाई ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेकर इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया। माता-पिता के गुण संयम, साहस, सहिष्णुता, देश-प्रेम का प्रभाव वल्लभभाई के चरित्र पर स्पष्ट था। वल्लभ भाई पटेल की शुरूआती शिक्षा गाँव में ही हुई इसके बाद वे पढने के लिए नाडियाड फिर वहां से वडौदा चले गए

स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले बारडोली का सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा।

संघर्ष को वे जीवन की व्यस्तता समझते थे। गांधीजी के कुशल नेतृत्व में सरदार पटेल का स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान उत्कृष्ट एवं महत्त्वपूर्ण रहा है। यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उप प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनों ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।

गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये कर दिखाया। केवल हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन १९५० में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।

अनिश्चितता ग्रामीण अर्थव्यवस्था की एक विशेषता रही है। असाधारण से साधारण राजस्व अधिकारी किसानों को परेशान करते थे। वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना प्रकट करते हुए कहा : " दुनिया का आधार किसान और मजदूर पर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता है, तो यह दोनों ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। मैं किसान हूँ, किसानों के दिल में घुस सकता हूँ, इसलिए उन्हें समझता हूँ कि उनके दुख का कारण यही है कि वे हताश हो गये हैं। और यह मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी हुकूमत के विरुद्ध क्या हो सकता है ? सरकार के नाम पर एक चपरासी आकर उन्हें धमका जाता है, गालियाँ दे जाता है और बेगार करा लेता है। "

किसानों की दयनीय स्थिति से वे कितने दुखी थे इसका वर्णन करते हुए पटेल ने कहा: " किसान डरकर दुख उठाए और जालिम का लातें खाये, इससे मुझे शर्म आती है। और मैं सोचता हूँ कि किसानों को गरीब और कमजोर न रहने देकर सीधे खड़े करूँ और ऊँचा सिर करके चलने वाले बना दूँ। इतना करके मरूँगा तो अपना जीवन सफल समझूँगा "

सरदार वल्लभ भाई पटेल हमारे बीच लगभग ७५ वर्षों तक रहें १५ दिसम्बर १९५० को उनका निधन हो गया भारत सरकार ने उन्हें सन १९९१ में 'भारत रत्न' से सम्मानित किया आज सरदार वल्लभ भाई पटेल हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।

जब हिल उठा देशः इंदिरा गांधी की हत्या















साभार -ibnkhabar.com 
नई दिल्ली। उड़ीसा में जबरदस्त चुनाव प्रचार के बाद इंदिरा गांधी 30 अक्टूबर 1984 की शाम दिल्ली पहुंची थीं। आमतौर पर जब वो दिल्ली में रहती थीं तो उनके घर 1 सफदरजंग रोड पर जनता दरबार लगाया जाता था। लेकिन ये भी एक अघोषित नियम था कि अगर इंदिरा दूसरे शहर के दौरे से देर शाम घर पहुंचेंगी तो अगले दिन जनता दरबार नहीं होगा। 30 तारीख की शाम को भी इंदिरा से कहा गया कि वो अगले दिन सुबह के कार्यक्रम रद्द कर दें। लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया। वो आइरिश फिल्म डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव को मुलाकात का वक्त दे चुकी थीं।
एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट बताते हैं कि जैसे एक नॉर्मल तरीका होता है। सुबह उठकर आप जनता से मिलते हैं तो उस दिन एक बिजी शिड्यूल था। उनके इंटरव्यू के लिए बाहर से एक टीम आई हुई थी। पीटर उस्तीनोव आए। उन लोगों ने अपना सर्वे किया। ये देखा कि खुली जगह पर इंटरव्यू करना चाहिए। वहां दीवाली के पटाखे पड़े हुए थे। उसको साफ-वाफ करवा कर वैसा इंतजाम करवाया गया तो उसमें कुछ वक्त लग रहा था।
दरअसल पीटर इंदिरा गांधी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे थे। इस बीच सुबह के आठ बजे इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर के धवन 1 सफदरजंग रोड पहुंच चुके थे। धवन जब इंदिरा गांधी के कमरे में गए तो वो अपना मेकअप करा रही थीं। इंदिरा ने पलटकर उन्हें देखा। दीवाली के पटाखों को लेकर थोड़ी नाराजगी भी दिखाई और फिर अपना मेकअप पूरा कराने में लग गईं।

महात्मा गांधी के बाद उनके परिवार का क्या हुआ?

कुमार हिन्‍दुस्‍तानी कहिन - मेरी भी सुनो
साभार भड़ास मीडिया विचार

नाम : मोहनदास करमचंद गांधी। उपनाम : बापू, संत, राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी। जन्मतिथि : 2 अक्तूबर 1869। जन्म स्थान : पोरबंदर, गुजरात। विशेष : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अंहिसक और शांतिप्रिय प्रमुख क्रांतिकारी, जन्मदिन पर राष्ट्रीय अवकाश, भारतीय मुद्रा पर फोटो, सरकारी कार्यालयों में तस्वीर। बचपन से ही विद्यालयों में बच्चों को बापू के बारे में बताया जाता है और उनकी जीवनी रटाई जाती है। दे दी हमें आजादी बिना खडग़ बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। गाना भी हिंदुस्तानियों की जुबां पर सुना जा सकता है। लेकिन नाम गुम जाएगा चेहरा ये नजर आएगा... कहावत आज बापू पर चरितार्थ होती दिख रही है। बस फर्क इतना है कि नाम गांधी जयंती पर याद आता है और चेहरा कभी कभार नोट को ध्यान से देखने पर दिखता है। इतनी जानकारी आज स्वतंत्र भारत में अधिकांशत : हर पढ़े-लिखे व्यक्ति को पता है। गांधी की जीवनी बचपने में पढऩे के बाद हर वर्ष 2 अक्तूबर को राष्ट्रीय अवकाश वाले दिन भी गांधी से संबंधित कई लेख पढऩे को मिल जाते हैं। लेकिन महात्मा गांधी के बाद उनके परिवार का क्या हुआ? उनके कितने बच्चे थे? आज उनके परिवार के सदस्य जीवित भी हैं या नहीं? उनके परिवार की कितनी पीढिय़ां आज मौजूद हैं? वे क्या कर रहीं हैं? कहां हैं? कितने सदस्य हैं? जैसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब पढ़े-लिखे तो क्या विशेषज्ञों और पीएचडी धारकों को भी नहीं पता होंगे। लेकिन आज आपको बताते हैं महात्मा गांधी के परिवार की मौजूदा स्थिति के बारे में। इंटरनेट की एक वेबसाइट की मानें तो बापू के पौत्र, प्रपौत्र और उनके भी आगे के वंशज आज विश्व में छह देशों में निवास कर रहे हैं। जिनकी कुल संख्या 136 सदस्यों की है। हैरानी होगी यह सुनकर कि इनमें से 12 चिकित्सक, 12 प्रवक्ता, 5 इंजीनियर, 4 वकील, 3 पत्रकार, 2 आईएएस, 1 वैज्ञानिक, 1 चार्टड एकाउंटेंट, 5 निजी कंपनियों मे उच्चपदस्थ अधिकारी और 4 पीएचडी धारी हैं। इनमें सबसे ध्यान देने योग्य बात यह है कि मौजूदा परिवार में लड़कियों की संख्या लड़कों से काफी ज्यादा है। आज उनके परिवार के 136 सदस्यों में से 120 जीवित हैं। जो भारत के अलावा अमेरीका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और इंग्लैंड में रहते हैं। बापू के बारे में : महात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद्र और माता का नाम पुतलीबाई था। अपने परिवार में सबसे छोटे बापू की एक सबसे बड़ी बहन और दो बड़े भाई थे। इनकी सबसे बड़ी बहन रलियत, फिर भाई लक्ष्मीदास और भाभी नंद कुंवरबेन, भाई कृष्‍णदास और भाभी गंगा थीं। बापू का परिवार : सबसे बड़े पुत्र हरिलाल (1888-18 जून 1948) का ब्याह गुलाब से हुआ। जबकि दूसरे पुत्र मणिलाल (28 अक्तूबर 1892- 4 अप्रैल 1956) की पत्नी का नाम सुशीला था। तीसरे पुत्र रामदास (1897-1969) की शादी निर्मला से हुआ। जबकि चौथे और अंतिम पुत्र देवदास (1900-1957) की पत्नी लक्ष्मी थीं। वंशावली दूसरी पीढ़ी से - रामिबेन गांधी-कवंरजीत परिख ए. अनसुया परिख-मोहन परिख क. राहुल परिख-प्रभा परिख ख. लेखा-नरेन्द्र सुब्रमण्यम अवनी व अक्षय अमल 2. सुधा वजरिया-व्रजलाल वजरिया क. मनीषा-राजेश परिख ख. पारुल-निमेष बजरिया नील व दक्ष अनेरी व सार्थक ग. रवि वजरिया-शीतल वजरिया आकाश व वीर 3. प्रबोध परिख-माधवी परिख क. सोनल-भरत परिख ख. पराग-पूजा परिख रचना व गौरव प्राची व दर्शन 4. नीलम परिख-योगेन्द्र परिख क. समीर परिख-रागिनी पारिख सिद्धार्थ, पार्थ व गोपी - कांतिलाल गांधी-सरस्वती गांधी क. शांतिलाल-सुझान गांधी अंजली, अलका , अनिता व एना 2. प्रदीप गांधी-मंगला गांधी प्रिया व मेघा -रसिकलाल गांधी -मनुबेन गांधी-सुरेन्द्र मशरूवाला 1. उर्मि देसाई-भरत देसाई क. मृणाल देसाई-आरती देसाई ख. रेणू देसाई -शांतिलाल गाँधी -सीता गांधी-शशीकांत धुबेलिया 1. कीर्ति मेनन-सुनील मेनन सुनीता 2. उमा मिस्त्री-राजेन मिस्त्री सपना 3. सतीश धुपेलिया-प्रतिभा धुपेलिया मीशा, शशिका व कबीर -अरुण गांधी-सुनंदा गांधी क. तुषार गांधी-सोनल गांधी ख. अर्जना प्रसाद- हरि प्रसाद विवान व कस्तूरी अनिष व परितोष -इला गांधी-मेवालाल रामगोबिन क. कृष गाँधी ख. आरती रामगोबिन ग. केदार रामगोबिन-मृणाल रामगोबिन घ. आशा रामगोबिन ड़. आशिष रामगोबिन-अज्ञात मीरा व निखिल -सुमित्रा गांधी-गजानन कुलकर्णी 1. सोनाली कुलकर्णी 2. श्रीकृष्ण कुलकर्णी-नीलू कुलकर्णी विष्णु 3. श्रीराम कुलकर्णी-जूलिया कुलकर्णी शिव -कहान गांधी-शिव लक्ष्मी गांधी -उषा गोकाणी-हरीश गोकाणी 1. संजय गोकाणी-मोना गोकाणी नताशा व अक्षय 2. आनंद गोकाणी-तेजल गोकाणी करण व अर्जुन -रामचंद्र गांधी-इंदू गांधी लीना गाँधी -तारा भट्टाचार्य-ज्योति भट्टाचार्य 1. विनायक भट्टाचार्य-लूसी भट्टाचार्य इण्डिया अनन्या, अनुष्का तारा व एंड्रीया लक्ष्मी 2. सुकन्या भरतराम-विवेक भरतनाम अक्षर विदूर -राजमोहन गांधी-उषा गांधी 1. देवव्रत गांधी 2. सुप्रिया गाधी -गोपाल कृष्ण गांधी-तारा गांधी 1. अनिता गांधी 2. दिव्या गांधी 3. रुस्तम मणिया

सभी प्रतिमाओं को तोड़ दो!


प्रस्तुत है स्वामी विवेकानंद कुछ कुछ कविताएँ-
साभार-जानकीपुल डॉट कॉम  एवम प्रभात रंजन 

समाधि
सूर्य भी नहीं है, ज्योति-सुन्दर शशांक नहीं,
छाया सा व्योम में यह विश्व नज़र आता है.
मनोआकाश अस्फुट, भासमान विश्व वहां
अहंकार-स्रोत ही में तिरता डूब जाता है.
धीरे-धीरे छायादल लय में समाया जब
धारा निज अहंकार मंदगति बहाता है.
बंद वह धारा हुई, शून्य में मिला है शून्य,
‘अवांगमनसगोचरं’ वह जाने जो ज्ञाता है.

जाग्रत देवता
वह, जो तुममें है और तुमसे परे भी,
जो सबके हाथों में बैठकर काम करता है,
जो सबके पैरों में समाया हुआ चलता है,
जो तुम सबके घट में व्याप्त है,
उसी की आराधना करो और
अन्य प्रतिमाओं को तोड़ दो!
जो एक साथ ही ऊंचे पर और नीचे भी है;
पापी और महात्मा, ईश्वर और निकृष्ट कीट
एक साथ ही है,
उसीका पूजन करो-
जो दृश्यमान है,
ज्ञेय है,
सत्य है,
सर्वव्यापी है,
अन्य सभी प्रतिमाओं को तोड़ दो!
जो अतीत जीवन से मुक्त,
भविष्य के जन्म-मरणों से परे है,
जिसमें हमारी स्थिति है
और जिसमें हम सदा स्थित रहेंगे,
उसीकी की आराधना करो,
अन्य सभी प्रतिमाओं को तोड़ दो!
ओ विमूढ़! जाग्रत देवता की उपेक्षा मत करो,
उसके अनंत प्रतिबिम्बों से से ही यह विश्व पूर्ण है.
काल्पनिक छायाओं के पीछे मत भागो,
जो तुम्हें विग्रहों में डालती है;
उस परम प्रभु की उपासना करो,
जिसे सामने देख रहे हो;
अन्य सभी प्रतिमाएं तोड़ दो!

प्याला
यही तुम्हारा प्याला है,
जो तुम्हें शुरु से मिला है,
नहीं, मेरे वत्स! मुझे ज्ञात है-
यह पेय घोर कालकूट,
यह तुम्हारी मंथित सुरा- निर्मित हुई है,
तुम्हारे अपराध, तुम्हारी वासनाओं से,
युग-कल्पों-मन्वन्तरों से.
यही तुम्हारा पथ है- कष्टकर, बीहड़ और निर्जन,
मैंने ही वे पत्थर लगाये, जिन्होंने तुम्हें कभी बैठने नहीं दिया,
तुम्हारे मीत के पथ सुहावने और साफ-सुथरे हैं
और वह भी तुम्हारी ही तरह मेरे अंक में आ जायेगा.
किन्तु, मेरे वत्स, तुम्हें तो मुझ तक यह यात्रा करनी ही है.
यही तुम्हारा काम है, जिसमें न सुख है, न गौरव ही मिलता है,
किन्तु, यह किसी और के लिए नहीं, केवल तुम्हारे लिए है,
और मेरे विश्व में इसका सीमित स्थान है, ले लो इसे.
मैं कैसे कहूँ कि तुम यह समझो,
मेरा तो कहना है कि मुझे देखने के लिए नेत्र बंद कर लो.