आम आदमी पार्टी

यह अकल्पनीय है कि महज एक साल पहले राजनीतिक दल के रूप में गठित आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के शासन की बागडोर संभाल ली। इस दल ने जिस तरह अपने गठन के बाद से लेकर विधानसभा चुनाव में करिश्माई जीत हासिल करने तक राजनीति के पारंपरिक तौर-तरीकों से हटकर काम किया उससे दिल्ली के साथ-साथ शेष देश की राजनीति भी प्रभावित नजर आ रही है। आम आदमी पार्टी का उत्थान महज एक क्षेत्रीय दल का उदय नहीं है। यह आम आदमी की उम्मीदों के साथ-साथ एक नए किस्म की वैकल्पिक राजनीति का भी उदय है। अरविंद केजरीवाल और उनके साथी आम आदमी का ही प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे, बल्कि वे उसके सपनों को साकार करने वाली राजनीति की ताकत को भी रेखांकित कर रहे हैं। शायद यही कारण है कि राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दल भी आम आदमी पार्टी की धमक महसूस कर रहे हैं। उन्हें ऐसा करना ही चाहिए, क्योंकि उन्होंने आम आदमी की अपेक्षाओं की जानबूझकर अनदेखी करने के साथ ही खुद में बदलाव की जरूरतों को भी नकारने का काम किया है। अगर मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने आम आदमी की भावनाओं का आदर करते हुए अपनी राजनीति के घिसे-पिटे तौर-तरीकों का परित्याग किया होता तो शायद आज उन्हें आम आदमी पार्टी के रूप में एक बड़ी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता। स्थापित राजनीतिक दलों के सामने एक चुनौती के रूप में उभरने और उन्हें अपनी रीति-नीति पर नए सिरे से विचार करने हेतु विवश करने के लिए केजरीवाल और उनके साथियों को विशेष रूप से धन्यवाद दिया जाना चाहिए। उन्होंने वह कर दिखाया जिसके बारे में आम आदमी के लिए कल्पना करना मुश्किल था।
नि:संदेह दिल्ली सरकार की कमान संभालने के साथ ही अरविंद केजरीवाल ने कांटों का ताज पहन लिया है। उनसे दिल्ली के साथ ही शेष देश की जनता को बहुत सी अपेक्षाएं हैं। इसके अतिरिक्त उनके सामने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की एक बड़ी चुनौती भी है। यह अच्छी बात है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के उनके संकल्प और तेवरों को देखते हुए दिल्ली की नौकरशाही आशंकित नजर आ रही है, लेकिन उनकी लड़ाई तब आसान होगी जब भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्हें नौकरशाही का सहयोग भी मिलेगा। एक नौकरशाह होने के नाते केजरीवाल को यह अहसास अवश्य होगा कि भ्रष्टाचार से लड़ने की बातें करने की अपेक्षा उसे नियंत्रित करना कहीं मुश्किल है। उन्होंने ठीक कहा कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं। ऐसी कोई छड़ी किसी के पास नहीं हो सकती, लेकिन ऐसा तंत्र अवश्य बनाया जा सकता है जो आम जनता की समस्याओं का समाधान करने के साथ ही भ्रष्टाचार पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाने में भी सक्षम हो। यही उनकी सफलता के निर्धारण की सबसे बड़ी कसौटी भी होगी। चूंकि आम आदमी पार्टी का उद्देश्य राजनीति और सत्ता की ताकत के जरिये व्यवस्था में बदलाव लाना है इसलिए उसके नेताओं को कुछ लचीलेपन के साथ व्यावहारिक भी बनना होगा। ऐसा करके ही अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी उन उम्मीदों को पूरा कर सकते हैं जिसके भरोसे दिल्ली की जनता ने उन्हें सत्ता तक पहुंचाया है।