माननीयों की सेफ्टी पर अरबों खर्च कर चुके अखिलेश

billions spent in uttar pradesh over security

यूपी में माननीयों की सुरक्षा सरकारी खजाने पर लगातार चोट कर रही है।

करीब दो हजार माननीयों की सुरक्षा बनाए रखने के लिए सरकारी खजाने पर रोज 77 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं।

यानी हर माह 22 करोड़, 77 लाख 60 हजार रुपये। इस खर्च को सालाना आंके तो यह करीब दो अरब 73 करोड़ 31 लाख 20 हजार रुपये बैठता है।

यानी माननीयों की सुरक्षा पर सरकारी खजाने को हर साल 273 करोड़ रुपये की चोट पहुंचती है।

तस्वीर का एक दूसरा रुख भी है। सूबे में सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर लाल बत्ती और सुरक्षाकर्मी दिए जाने का नतीजा यह है कि 10 महीने में रसूखदारों की सुरक्षा पर खर्च होने वाली रकम दोगुनी हो गई है।

फरवरी 2013 में इनकी सुरक्षा पर हर माह 10 करोड़ 20 लाख रुपये खर्च हो रहे थे जो दिसंबर में बढ़कर 23 करोड़ रुपये पहुंच गया। यही नहीं, इस दौरान सुरक्षाकर्मियों की संख्या भी 2900 से बढ़कर 5600 से अधिक हो गई।

सूबे में सुरक्षाकर्मी रखना स्टेटस सिंबल माना जाता है। नेताओं और रसूखदारों में सबसे ज्यादा जोर सुरक्षा कर्मी और शस्त्र लाइसेंस हासिल करने पर रहता है।

इसके लिए हर जुगत भिड़ाई जाती है। पहली प्राथमिकता यह होती है कि सुरक्षा कर्मी सरकारी खर्चे पर मिले। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आंशिक व्यय या फिर पूर्ण व्यय पर हासिल करने की जोड़-तोड़ शुरू हो जाती है।

पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में 1998 महानुभाव हैं जिन्हें शासकीय व्यय पर सुरक्षा हासिल है।

तत्कालीन आईजी कानून-व्यवस्था बद्री प्रसाद ने एक फरवरी 2013 को औपचारिक रूप से जानकारी दी थी कि उस समय कुल 1146 माननीयों को शासकीय व्यय पर सुरक्षा हासिल थी।

तब सबसे अधिक सुरक्षा कर्मी लखनऊ में, इसके बाद इलाहाबाद और फिर गौतमबुद्ध नगर से दिए गए थे। उस लिहाज से तब पूरे साल में यह खर्च एक अरब 22 करोड़ 43 लाख दस हजार 850 रुपए था जो अब बढ़ कर लगभग पौने तीन अरब रुपये तक पहुंच चुका है।

किन्हें हासिल है यह सुरक्षा
मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रिमंडल के सदस्य, विधायक, सांसद, विधान परिषद के सदस्य, निगमों व उपक्रमों के अध्यक्ष, विभिन्न राजनीतिक दलों के जन प्रतिनिधि, पूर्व मंत्री, न्यायाधीश व अन्य लोग। इनमें नि:शुल्क व आधे शुल्क वाले सुरक्षाकर्मियों का व्यय भी शामिल है।